Braj Darshn Yatra
॥ ॐ योग योगेश्वराय नमः ॥
अपने पितरों के कल्याणार्थ भव्य श्रीमद्भागवत कथा एवं बृज 84 कोस यात्रा का आयोजन किया जा रहा है आप श्री भी इस पावन कथा मे यजमान, पोथी यजमान, उत्सव यजमान बनकर इस पुनीत कार्य में सम्मिलित होकर पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते है ।।
दिनाँक :- 05 से 11 नवम्वर 2024
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क्या है महत्व ?
वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का बहुत महत्व है, ब्रज भूमि भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी शक्ति राधा रानी की लीला भूमि है।
बृज 84 कोस यात्रा के अंतर्गत कृष्ण की लीलाओं से जुड़े 1100 सरोवरें हैं
ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा मथुरा के अलावा राजस्थान और हरियाणा के होडल जिले के गांवों से होकर गुजरती है।
करीब 268 किलोमीटर परिक्रमा मार्ग में परिक्रमार्थियों के विश्राम के लिए 25 पड़ावस्थल हैं। इस पूरी परिक्रमा में करीब 1300 के आसपास गांव पड़ते हैं। कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 1100 सरोवरें, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं। बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और देवालयों के दर्शन भी परिक्रमार्थी करते हैं, जिनके दर्शन शायद पहले ही कभी किए हों।
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मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा और नंदबाबा के दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था। 84 कोस की परिक्रमा लगाने से 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है। परिक्रमा लगाने से एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस परिक्रमा के करने वालों को एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। साथ ही जो व्यक्ति इस परिक्रमा को लगाता है, उस व्यक्ति को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कहा गया है कि यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से 4 धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं, इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं। उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां मौजूद हो गए।
84 कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है। इसके अलावा गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन यहां श्रद्धालुओं को होते हैं। तत्पश्चात यशोदा मैया व नन्दबाबाने उनकी परिक्रमा की। तभी से ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है
॥ 84 कोस परिक्रमा मुख्य दार्शनिक स्थल ॥
- भक्त ध्रुव तपोस्थली
- मधुवन
- तालवन
- कुमुदवन
- शांतनु कुण्ड
- सतोहा
- बहुलावन
- राधा-कृष्ण कुण्ड
- गोवर्धन
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- काम्यवन
- संच्दर सरोवर
- जतीपुरा
- डीग का लक्ष्मण मंदिर
- साक्षी गोपाल मंदिर
- जल महल
- कुमुदवन
- चरन पहाड़ी कुण्ड
- काम्यवन
- बरसाना
- नंदगाँव
- जावट
- कोकिलावन
- कोसी
- शेरगढ़
- चीर घाट
- नौहझील
- श्री भद्रवन
- भांडीरवन
- बेलवन
- राया वन
- गोपाल कुण्ड
- कबीर कुण्ड
- भोयी कुण्ड
- ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर
- दाऊजी
- महावन
- ब्रह्मांड घाट
- चिंताहरण महादेव
- गोकुल
- लोहवन
- वृन्दावन के मार्ग में तमाम पौराणिक स्थल हैं। के दर्शन करने का सौभाग्य भी आपको प्राप्त होगा ।
- ब्रज चौरासी कोस यात्रा में दर्शनीय स्थलों की भरमार है। पुराणों के अनुसार उनकी उपस्थिति अब कहीं-कहीं रह गयी है। प्राचीन उल्लेख के अनुसार यात्रा मार्ग में-
- 12 वन
- 24 उपवन
- चार कुंज
- चार निकुंज
- चार वनखंडी
- चार ओखर
- चार पोखर
- 365 कुण्ड
- चार सरोवर
- दस कूप
- चार बावरी
- चार तट
- चार वट वृक्ष
- पांच पहाड़
- चार झूला
- 33 स्थल रासलीला के तो हैं हीं, इनके अलावा कृष्ण कालीन अन्य स्थल भी हैं। चौरासी कोस यात्रा मार्ग मथुरा में ही नहीं, अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फ़रीदाबाद की सीमा तक में पड़ता है, लेकिन इसका अस्सी फ़ीसदी हिस्सा मथुरा में है।
नियमों का नित्य पालन
ब्रज यात्रा के अपने नियम हैं। इसमें शामिल होने वालों को प्रतिदिन 36 नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है। इनमें प्रमुख हैं- नित्य स्नान, ब्रह्मचर्य पालन, नित्य देव पूजा, कथा-संकीर्तन, क्रोध, मिथ्या, लोभ, मोह व अन्य दुर्गुणों का त्याग प्रमुख है।
॥ आज ही अपना पंजीयन कराए ॥
- सेवा :- 6,900 ( आश्रम की व्यवस्था अनुसार रहना )
- सेवा – 9,900 प्रति व्यक्ति (स्पेशल कमरा जिसमे 3 – 4 भक्त रहेंगे)
- सेवा – 13,900 प्रति व्यक्ति (स्पेशल डीलक्स कमरा जिसमे दो भक्त रहेंगे)
- पोथी यजमान सेवा – 14,900
- मुख्य यजमान सेवा – 1,11,000
सूचना :-
- दी गई सभी सेवाओं में ट्रस्ट के द्वारा सभी भक्तो के लिए रुकने एवं दोनो समय के भोजन, नाश्ता, चाय की उचित व्यवस्था की जाएगी ।
- भक्तो को वृंदावन स्वयं के साधन एवं किराए से पहुंचना होगा । और यदि ट्रस्ट के द्वारा आप जाना चाहे तो उसका सम्पूर्ण किराया आपको भुगतान करना होगा ।
- 5 वर्ष तक के बच्चों का कोई शुल्क नहीं है , 5 से 14 वर्ष तक के बच्चों का आधा और 14 वर्ष से बड़े बच्चों का पूर्ण शुल्क देना होगा।
- अपने सामान की स्वयं रक्षा करें। कीमती आभूषण इत्यादि पहन कर ना आये ।