Biography
।। जीवनी।।
परम श्रद्धेय श्री हितेंद्र कृष्ण जी महाराज
भारत भूमि संतों की महान भूमि रही है। इसमें ऐसे कई संतों, ऋषियों और गुरुओं का जन्म हुआ है जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन संसार को ग्यान, भक्ति तथा मोक्ष का मार्ग दिखाने में समर्पित किया है।
ऐसे ही वेदिक, आध्यात्मिक वाङ्मय गरिमामयी व्यास परम्परा की विलक्षण वाग्धारा के रसमय वाहक हैं,
” परम श्रद्धेय श्री हितेंद्र कृष्ण जी महाराज ।
पूज्य महाराज जी , श्री हरी कथा , सतसंग , भजन एवं विभिन्न यात्राओं के माध्यम से सम्पूर्ण जगत में हरिनाम संकीर्तन के साथ साथ सनातन धर्म की दिव्य परम्पराओं एवं वैदिक विज्ञान का प्रचार प्रसार कर रहे है।
आइये महाराज श्री के विषय में विस्तार से जानते है –
जन्म
श्री हितेंद्र कृष्ण महाराज जी का जन्म शुक्रवार , आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुष्य नक्षत्र, हर्षण योग,गोधूलि बेला में विक्रम संवत २०५२ ( 30 जून 1995 ) को सतयुग की गंगा कही जाने वाली परम पावन नदी चम्बल के पास स्थित एक ऐसे छोटे से गाँव में हुआ। जिसमें सभी ब्राह्मण परिवार ही वास करते हैं।
ऐसी पावन वैष्णव भक्तों से सुशोभित ब्रह्मपुरी रामगढ़ में आपने एक ऐसे संत के कुल में जन्म लिया जो अपनी तपस्या के तेज से प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में चम्बल नदी के उस पार भोले नाथ की पूजा करने के लिए नदी के पानी के ऊपर ऐसे चलकर जाते थे जैसे जमीन पर चल रहे हों,
तथा महाराज जी के परदादा बैकुंठ वासी श्री मुरारी लाल मरैया जी माँ धूनी वाली कैला मैया ( दुर्गा माँ ) के परम भक्त थे तथा माँ के आशीर्वाद से सभी जगह से आए हुए श्रद्धालुओं के कष्ट को दूर किया करते थे।
महाराज जी के पूज्य दादाजी जिनका विशेष स्नेह और प्रेम महाराज जी को आज भी प्राप्त है ऐसे श्री बनवारी लाल मरैया जी त्रिकाल संध्या करने वाले परम वैष्णव भक्त हैं। इन्ही की गोद में बैठ कर महाराज जी ने बचपन से रामायण ,भागवत आदि ग्रंथो का श्रवण किया।
इन्हीं सब संत भक्तों की भक्ति के परिणामस्वरूप श्री रामनिवास शर्मा जी और श्रीमती शारदा शर्मा जी (महाराज जी के माता-पिता) को एक पुत्र रत्न के रूप में एक दिव्य बालक की प्राप्ति हुई।
शैशवावस्था में हुआ चमत्कार
जब महाराज जी मात्र ६ दिन के एक छोटे से बालक थे।
उस समय इनका एक अदृश्य बुरी शक्ति ने अनिष्ट करना चाहा ,रात्री काल में महाराज जी की दादी ने देखा के एक कोई काला साया स्त्री के रूप में सूतिका गृह से निकल रहा है, यह देख घबराकर जब वह अन्दर पहुँची तो देखा की बालक का पूरा शरीर नीला पड़ गया है ,
तब साक्षात माँ धूनी वाली ने प्रगट होकर इनकी रक्षा की और एक दिव्य तेज इनको प्रदान किया।
उपनाम – सोम शर्मा , राधा मोहन
” सोम ” इस संज्ञा से आपका शैशव आभूषित हुआ। तथा बचपन में सभी लोग इसी नाम से आपको पुकारते थे।
” राधा मोहन ” नाम आपके दादा जी के द्वारा रखा गया है और केवल वही आपको राधा मोहन कह कर पुकारते है।
माता-पिता को अपने बाल्यक्रीडा से हर्षित करते हुये प्रतिपच्चन्द्र के समान प्रतिक्षण वृद्धि को प्राप्त करते हुये शैशवकाल व्यतीत होता रहा। नवगत शिशु की कमनीयता व उसकी दीप्ति से ही परिलक्षित होता था कि यह शिशु सामान्य नहीं सविशेष लक्षणों से युक्त है।
जो भी व्यक्ति इस बालक को देखता वह यही कहता था की यह बालक अवश्य परिवार तक सीमित न रहते हुये एक दिन महत्वपूर्ण पदवी को प्राप्त करेगा।
यह भी विशेष है कि जन्म-जन्मान्तर के पुण्य संचय का फल, उन धर्मात्मा दम्पती को प्राप्त होता है, जिनके घर ऐसे शिशु जन्म लेते हैं। चपल बाललीलाभिरत सोम ने शनै: शनै: शैशवावस्था से बाल्यकाल प्राप्त किया ।
बाल्यकाल में हुआ चमत्कार
बाल्य काल में ही एक दिन महाराज जी एकांत में एक कक्ष में बैठ कर हारमोनियम पर पद गायन कर रहे थे , पद गायन करते करते उन्हें आभास हुआ कि उनका रोम रोम पुलकायमान हो गया है।
एवं एक दिव्य प्रकाश चारों तरफ फैला हुआ है। तथा उस प्रकाश में उनके सामने साक्षात राधा रानी बैठी हुयी है ,और श्री कृष्ण , महाराज श्री का हाथ पकड़ कर हारमोनियम बजवा रहें हैं।
इस प्रकार बचपन में ही महाराज जी को श्री हरी का साक्षात्कार प्राप्त हो गया।
भविष्यवाणी
एक बार ब्रह्मपुरी रामगढ़ में प्रकांड विद्वान पधारे महाराज श्री के पूज्य दादा जी ने उन्हें अपने घर पर आमन्त्रित किया और बालक का नामकरण करने की प्रार्थना की। जब ज्योतिष की गृह गणना की गयी और बालक को देखा तो वह अचंभित हो गए , तदुपरांत उन दिव्य तेजधारी विज्ञ ब्राह्मण ने अल्पायु सोम के अलौकिक लक्षणों से पूरी तरह मंत्रमुग्ध होकर एक भविष्यवाणी की,
“वह निकट भविष्य में एक महान प्रबुद्ध व्यक्ति” के रूप में दुनिया भर के लोगों को आश्चर्यचकित करेगा “और समस्त विश्व में भक्ति , ग्यान , विज्ञान और अध्यात्म के क्षेत्र में पताका लहराएगी।
एवं महाराज श्री के गुणों व ज्योतिष की गणना को देखते ” हितेन्द्र ” नाम रखा।
जिसका अर्थ हैं इन्द्रा का भी जो हित करने वाला हो अर्थात श्री हरी नारायण।
इस प्रकार भगवान नारायण के नाम पर महाराज जी का नाम रखा गया हितेन्द्र।
शिक्षा
महाराज श्री ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही सरकारी विद्यालय से प्राप्त की एवं आधुनिक ग्यान प्राप्ति के लिए 10 वर्ष की अवस्था में अपने माता-पिता के साथ गालव ऋषि की तपोभूमि तथा संगीत सम्राट तानसेन की साधना स्थली ग्वालियर में आए तथा माता-पिता की आज्ञानुसार अपनी 12 वीं तक कि शिक्षा (गणित से ) पूरी की।
महाराज श्री बचपन से ही अपनी प्रतिभा से सभी को आश्चर्यचकित करते रहे हैं। बाल्यकाल से ही भक्ति ज्ञान के साथ-साथ चित्रकला , मूर्तिकला , पाककला, गायन , वादन , श्रंगार , बागवानी , शास्त्र विद्या , मन्त्र विद्या .. आदि के साथ-साथ आधुनिक उपकरणों को सही करने का भी ज्ञान था।
एवं आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विद्याओं का कहीं भी औपचारिक रूप से कभी भी प्रशिक्षण नहीं लिया।
अतः उनकी इन्ही सब प्रतिभाओं को दिशा देने हेतु माता-पिता ने उन्हें वैज्ञानिक बनने की सलाह दी।
जिससे कि समस्त विश्व के कल्याणार्थ नए नए आविष्कार कर मानवजाति की सेवा कर सकें।
लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था |
दीक्षा
प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य श्री दामोदर शास्त्री जी (धनेला वाले ) के द्वारा महाराज श्री का यज्ञोपवीत संस्कार किया गया एवं गायत्री मन्त्र की दीक्षा के साथ-साथ अति अल्प समय में ही भागवत कथा का दिव्य ज्ञान प्रदान कर दिया।
तथा श्री कृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति के परिणामस्वरूप उन्होंने भागवत धर्म तथा अपनी संस्कृति के प्रचार-प्रसार की राह चुनी एवं श्रीधाम वृन्दावन की पावन भूमि में अनन्य नृपति स्वामी श्री हरिदास जी महाराज जो स्वयं ललिता सखी के अवतार है।
तथा जिन्होंने ब्रज के लाडले ठाकुर ‘श्री बांके बिहारी लाल’ को प्रगट किया ऐसी दिव्य परम्परा में टटिया स्थान में विराजमान ‘पुज्य गुरुदेव 108 श्री राधा विहारी दास जी महाराज’ से हरी नाम मन्त्र दीक्षा ग्रहण की |
कथा शैली
श्री गुरुदेव के अनन्य प्रेम तथा आशीर्वाद फलस्वरूप अल्प समय में ही उन्होंने सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत महापुराण का चिंतन मनन कर उसे अपनी मधुर वाणी द्वारा भगवत प्रेमियों को श्रीमद्भागवत रूपी फल का रसास्वादन कराने लगे।
महाराज श्री की कथा सैली इतनी अदभुत और अलौकिक है जिसका वर्णन करना संभव नहीं है।
कई बार कथाओं एव सतसंगो में महाराज श्री को भगवत प्रेम में विह्वल हो कर आँखों से अश्रु बहाते हुए देखा गया है। जिस समय महाराज जी कथा रसपान कराते है तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमारी आँखों के सामने साक्षात भगवत लीला प्रगट हो रही हो।
महाराज जी केवल कथा का प्रचार ही नहीं करते बल्कि उसे अपने जीवन में भी उतारते हैं। वह श्रेष्ठ “हरी लीला” के दिव्य वर्णन से श्रोतागणों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। उन्होंने भगवत गीता, महाभारत, श्रीमद् भागवत कथा , के ऊर्जावान प्रवचनों के साथ दुनिया भर में हजारों लोगों को उत्साहित किया है।
उनकी अनूठी काव्य शैली ने श्रोताओं को आध्यात्मिक क्षेत्र में रूचि लेने के लिए उत्साहित किया है।
युवा चेतना
श्री हितेंद्र कृष्ण महाराज जी युवाओं को प्रबुद्ध करने के लिए तथा उनमें अपने धर्म संस्कृति की रक्षा की चेतना जागृत करने के लिए कथा के अंतिम दिन सेमिनार आयोजित करते हैं। जिसमें युवाओं की सभी जिज्ञासाओं तथा प्रश्नों का समाधान किया जाता है,
जिसमें महाराज जी युवाओं को हमारे देश के स्वर्णिम संस्कृति तथा इतिहास से परिचित कराते हैं।
महाराज जी बताते हैं कि, कैसे…
हमारे पूर्वजों ने हमें एक सुशिक्षित, समृद्ध, विकसित, स्वर्णिम और एक अखण्ड भारत हमें सौंपा था। जिसमें बेरोजगारी, भुखमरी, अशिक्षा जैसी आज की विकट समस्याओं के लिए कोई स्थान नहीं था।
लेकिन हमने अपनी विराटमूढ, लोभप्रिय, जड़ स्वरूपा बुद्घि का उपयोग सिर्फ सत्तालोलुप बनने के लिए करना उचित समझा। जिसके लिए हमने अपने धर्म, संस्कृति, संस्कार, सभ्यता, वेद, वेदान्त, पुराण, उपनिषद सभी को भुलाकर खुद को सिर्फ आधुनिकता की झूठी दोड़ में लगा दिया।
जिसके परिणामस्वरूप हमें पहले शारीरिक गुलामी और उसके बाद आजीवन मानसिक गुलामी मिली है, और एक गुलाम को ये अधिकार नहीं की वो अपनी सभ्यता, संस्कृति को बचाने के लिए आवाज उठा सके।
महाराज जी हमारे विचारों को निर्मल कर ग्यान के चक्षु खोलते हैं और हमें मानसिक गुलामी से मुक्ति दिलाकर भारतीय होने पर गर्व करना सिखाते हैं
अपने सेमिनार के द्वारा महाराज जी हमें झूठी आधुनिकता और शाश्वत सनातन धर्म में अन्तर समझाते हैं और बताते हैं कि कैसे हमारा सम्पूर्ण सनातन धर्म विज्ञान पर आधारित है।
महाराज जी का कहना है कि आज विश्व को बचाने के लिए हमें भारत की संस्कृति को बचाना होगा और संस्कृति तभी बचेगी जब हम युवाओं को साथ लाएंगे क्यूँकी किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा शक्ति होती है | और हमें गर्व होना चाहिए कि हमारी युवा शक्ति जिज्ञासु है बस आवश्यकता है अपनी संस्कृति को उन्हें विज्ञान के नजरिए से समझाने की।
युवाओं को उनके जीवन कि दिशा देने तथा उन्हें सनातन धर्म के विज्ञान को समझाने के लिए महाराज जी द्वारा ,गुरु गृह सेवा धाम, का निर्माण किया जा रहा है।
‘गुरु गृह सेवा धाम’ इस प्रकार का स्थान होगा जहाँ, आधुनिकता से परे, प्राचीन विज्ञान एवं संस्कृति के अनूठे संगम के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता, हरे भरे वृक्ष, सुंदर लता-पताऐं, पक्षियों का मधुर स्वर, झरनो की कल-कल करती मनमोहक ध्वनि, चारों और वही पावन-पवित्र बृज रज जिसमें हमारे ठाकुर बाँके बिहारी ने अपनी बाल लीलाएँ की।
‘गुरु गृह सेवा धाम’ में उसी प्राचीन दिव्य वृंदावन को उतारा जाएगा। जिसमें बसने की चाहत ब्रह्मा, विष्णु और महेश को भी रहती है।
जहाँ कदम रखते ही मन और शरीर में आनंद की स्फूर्ति होगी। यहाँ आकर आप अपने समस्त सांसारिक दुःखों एवं चिंताओं से मुक्त हो आनंदमय जीवन जीने की कला सीखेंगे।
‘गुरु गृह सेवा धाम’ उस प्राचीन भारत को आपको दिखाएगा जिसको आक्रमणकारियो ने बदल दिया था।
जिसके ऋषि-मुनि वैज्ञानिक थे। तथा उन्होने सनातन धर्म के उत्थान के लिए अनेक वैज्ञानिक अनुसंधान किए। उन सभी अनुसंधानों से आपको परिचित कराएंगे जिससे हमारी युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित ना होकर अपने भारतीय होने पर गर्व करे।
‘गुरु गृह सेवा धाम’ में प्राचीन भारतीय आयुर्वेदिक पद्दति के द्वारा रोगों का निदान कर उस पर अनुसंधान एवं उसका प्रचार-प्रसार किया जाएगा।
‘गुरु गृह सेवा धाम’ में प्राचीन भारत की 64 कलाओं जो लगभग विलुप्त होने की कगार पर हैं। उनका पुनः अनुसंधान एवं उनको सिखाने की संपूर्ण व्यवस्था की जाएगी।
‘गुरु गृह सेवा धाम’ में भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था जिसके बल पर भारत कभी विश्व गुरु हुआ करता था और जो पूर्ण वैज्ञानिक थी। तथा जिसको सीखने के लिए विदेशों से भी विद्यार्थी आया करते थे। जो संपूर्ण विश्व में सबसे समृध्द थी। यहाँ उसी परंपरा को गुरु गृह के माध्यम से स्थापित किया जाएगा एवं भारत को नई दिशा एवं ऊर्जा प्रदान करने वाले ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया जाएगा।
‘गुरु गृह सेवा धाम’ में आपको सनातन धर्म से जुड़े प्रत्येक संस्कार एवं उसके पीछे छिपे वैज्ञानिक कारण बताएँगे।
कि क्यूँ गर्भाधान संस्कार पर राष्ट्र का भविष्य निर्भर है?
क्यूँ मूर्ति पूजा का विधान बताया गया है?
क्या वाकई में बाल विवाह अपराध है?
मंदिरों का प्राचीन विज्ञान क्या है?
सत्य के प्रचारार्थ ” सनातन संस्कृति ” का प्रचार प्रसार करने के लिए आप एक बार ‘गुरु गृह सेवा धाम’ से अवश्य जुड़िए | निश्चित ही आपको अपने जीवन में एक सकारात्मक दृष्टिकोण मिलेगा और जीवन जीने की एक अद्भुत कला सीखेंगे साथ ही धन कमाने के साथ-साथ सुखी गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए मोक्ष का मार्ग प्रशस्थ होगा।
गुरू गृह सेवा धाम से आप विभिन्न रूपों में जुड़ कर अपनी सेवा प्रदान कर सकते हैं
संस्थापक सदस्य :- 1,51,000
कार्यकारिणी सदस्य :- 51,000
संरक्षक सदस्य :- 21,000
आजीवन सदस्य:- 11,000
सहयोगी सदस्य :- 5,100
गुरू सेवक :- 1,100
प्रचारक :- 501
स्वंय सेवक :- 151
श्रीधाम वृन्दावन की पावन भूमि में गुरु गृह सेवाधाम के निर्माणार्थ भूमिदान कर पुण्य लाभ प्राप्त करें- 11 गज भूमि दान- 2,51,000, 7 गज भूमि दान- 1,51,000, 5 गज भूमि दान- 1,11,000, 3 गज भूमि दान-51,000, 1 गज भूमि दान- 21,000, ½ गज भूमि दान- 11000 ।
सहयोग करने के लिए संस्था के अकाउंट नंबर इस प्रकार हैं- Guru Grah Seva Charitable Trust, A/c No. 50200063955950, IFSC- HDFC0000942, Branch- Vrindavan
भूमिदान महादान सम्पर्क सूत्र- 7089500951, 7086500981,
गुरू गृह की सम्पूर्ण जानकारी आप हमारी वेबसाईट से प्राप्त कर सकते हैं
www.gurugrah.com
Shri Hitendra Krishna Ji Maharaj
Bharat Bhoomi has been a great land of saints. Many such saints, rishis and gurus have been born in it.
Who has dedicated his entire life in showing the world the path of knowledge, devotion and salvation.
Similarly, the Vedic, spiritual voices are the melodious carriers of the wonderful Vyasa tradition of the glorious Vyasa tradition,
“Param Rasik Reverend Shri Hitendra Krishna Maharaj Ji.
Pujya Maharaj Ji is spreading the divine traditions of Sanatan Dharma and Vedic science along with Harinam Sankirtana in the whole world through Shri Hari Katha, Satsang, Bhajan and various Yatras.
Let us know in detail about Maharaj Shree –
|| Birth ||
Shri Hitendra Krishna Maharaj ji was born on Friday, on the third day of Shukla Paksha of Ashadh month in Pushya Nakshatra, Harshana Yoga, dusk in Vikram Samvat 2052 (30 June 1995) in such a small village Ramgarh.
In Brahmapuri Ramgarh, adorned with such holy Vaishnava devotees, you were born in the family of a saint who, with the intensity of his penance, used to walk on the water of the river as if walking on the ground,
And the great-grandfather of Maharaj Ji, Mr. Murari Lal Maraiya, a resident of Baikunth.
Maa Dhuni Wali was an ardent devotee of Kaila Maiya (Durga Maa), and used to remove the sufferings of devotees who came from all over with the blessings of the mother.
Maharaj ji’s revered grandfather whose special affection and love Maharaj ji enjoys even today.
Such Shri Banwari Lal Maraiya ji is the supreme Vaishnava devotee who performs Trikal Sandhya. Sitting in his lap, Maharaj ji listened to the scriptures like Ramayana, Bhagwat etc. from childhood.
As a result of the devotion of all these saint devotees, Shri Ramnivas Sharma Ji and Shrimati Sharda Sharma Ji (parents of Maharaj Ji) got a divine Vaishnava devotee in the form of a son Ratna.
|| Miracle in infancy ||
Just as our beloved Braj’s Thakur Shri Krishna killed many demons in his childhood.
We get to see glimpses of something like this in the infancy of Shri Hitendra Krishna Maharaj Ji.
When Maharaj ji was a small child of only 6 days.
At that time, an invisible evil force wanted to harm them, during the night time Maharaj Ji’s grandmother saw that a black shadow is coming out of Sutika Griha in the form of a woman,
Seeing this, when she reached inside, she saw that the whole body of the child had turned blue,
Then Mother Dhuni Wali appeared and protected them and gave them a divine effulgence.
Nickname – Som Sharma, Radha Mohan
Your infancy was adorned by this noun “Soma”.
And in childhood everyone used to call you by this name.
The name “Radha Mohan” is kept by your grandfather and only he calls you Radha Mohan.
Making his parents happy with his child sports, he continued to spend his infancy and attained the same growth as Pratipachchandra.
It was reflected from the versatility and brilliance of the newly born baby that this baby is not normal but with special symptoms.
Whoever saw this child, he used to say that this child will definitely not be limited to the family but will one day attain an important position.
It is also special that the result of accumulation of merit after birth after birth is received by those virtuous couple in whose house such children are born. The playful Ballilabhirat Soma gradually attained childhood from infancy.
|| Miracle in childhood ||
One day in childhood, Maharaj ji was sitting in a room alone and singing hymns on the harmonium,
While singing the hymns, he realized that his rome had blossomed.
And a divine light is spread all around. And in that light Radha Rani is sitting in front of him, and holding the hand of Shri Krishna Maharaj ji is playing harmonium.
|| Prediction ||
Once a great scholar came to Brahmapuri Ramgarh
Maharaj Shree’s revered grandfather invited him to his house and prayed for naming the child.
When the house calculation of astrology was done and he saw the child, he was astonished, then the divine bright-wisher brahmin, completely mesmerized by the supernatural features of Alpayu Soma, made a prediction,
“He will surprise people all over the world as a great enlightened person in the near future” and will hoist the flag in the field of Bhakti, Gyan, Science and Spirituality all over the world.
|| Education ||
With his parents at the age of 10 to acquire modern knowledge
Galav Rishi’s Tapobhoomi and Sangeet Samrat Tansen’s sadhana place came to Gwalior.
And completed his education till 12th (Mathematics) as per the order of his parents.
Maharaj Shree has been surprising everyone with his talent since childhood. Since childhood, along with devotional knowledge, there was also the knowledge of painting, sculpture, cooking, singing, vadan, adornment, horticulture, scripture, mantra learning etc., as well as to correct modern equipment.
And the surprising thing is that all these disciplines were never formally trained anywhere.
Therefore, to give direction to all these talents, his parents advised him to become a scientist.
So that we can serve mankind by making new inventions for the welfare of the whole world.
But destiny had something else in mind.
|| Initiation ||
The sacrificial ceremony of Maharaj Shri was performed by the famous grammarian Shri Damodar Shastri ji (Dhanela Vale).
And along with the initiation of Gayatri Mantra, he provided the divine knowledge of Bhagwat Katha in a very short time.
And as a result of exclusive devotion to Shri Krishna, he chose the path of propagation of Bhagwat Dharma and his culture.
And in the holy land of Shridham Vrindavan, the unique Nripati Swami Shri Haridas Ji Maharaj who is himself an incarnation of Lalita Sakhi.
And the one who manifested the beloved Thakur of Braj ‘Shri Banke Bihari Lal’ in such a divine tradition, sitting in a tatiya place.
Received initiation from ‘Pujya Gurudev 108 Shri Radha Vihari Das Ji Maharaj’ to the Hari Naam Mantra.
|| Narrative style ||
In a short time as a result of the exclusive love and blessings of Shri Gurudev
After contemplating the entire Shrimad Bhagwat Mahapuran, he started giving it the taste of Shrimad Bhagwat to the lovers of God through his melodious voice.
The story of Maharaj Shree Sally is so wonderful and supernatural that it is not possible to describe it.
Many times in stories and satsangos, Maharaj Shree has been seen shedding tears from his eyes, engrossed in the love of God.
At the time when Maharaj ji makes Katha Raspan, it seems as if the Bhagwat Leela is being manifested in front of our eyes.
Maharaj ji not only propagates the story but also carries it out in his life.
He enthralls the audience with his divine description of the best “Hari Leela”.
He has enthralled thousands of people across the world with his energetic discourses of Bhagavad Gita, Mahabharata, Shrimad Bhagwat Katha.
His unique poetic style has enthused the listeners to take interest in the spiritual realm.
|| Youth consciousness ||
Shri Hitendra Krishna Maharaj Ji organizes seminars on the last day of the story to enlighten the youth and to awaken the consciousness of protecting their religion and culture.
In which all the curiosities and questions of the youth are resolved,
In which Maharaj Ji introduces the youth to the golden culture and history of our country.
Maharaj ji explains how…
Our ancestors gave us a well educated, prosperous, developed, golden and a united India.
In which there was no place for today’s dire problems like unemployment, hunger, illiteracy.
But we thought it appropriate to use our covetous, greedy, inert intellect only to become greedy for power.
For which we have forgotten our religion, culture, rites, civilization, Vedas, Vedanta, Puranas, Upanishads and put ourselves only in the false race of modernity.
As a result of which we have got physical slavery first and then lifelong mental slavery, and a slave does not have the right to raise his voice to save his civilization, culture.
Maharaj ji clears our thoughts and opens the eyes of knowledge
And teach us to be proud of being Indian by liberating us from mental slavery
Through his seminar, Maharaj Ji explains to us the difference between false modernity and eternal Sanatan Dharma and tells how our entire Sanatan Dharma is based on science.
Maharaj ji says that today to save the world
We have to save the culture of India and the culture will survive only when we bring the youth together because the future of any country is its youth power.
And we should be proud that our youth power is curious, just need to explain our culture to them from the point of view of science.
Guru Griha Seva Dham, is being built by Maharaj ji to give direction to the youth of their life and to make them understand the science of Sanatan Dharma.
‘Guru Griha Seva Dham’ will be such a place where, beyond modernity, the unique confluence of ancient science and culture, along with natural beauty, lush green trees, beautiful creepers, melodious voice of birds, Yamuna ji’s tomorrow- Tomorrow there is a beautiful sound, the same holy and sacred Brij Raj in which our Thakur Banke Bihari performed his childhood.
The same ancient divine Vrindavan will be lowered in ‘Guru Griha Seva Dham’. In which Brahma, Vishnu and Mahesh also have the desire to settle down.
Where there will be an ecstasy of joy in the mind and body as soon as you step. It will be felt as if Priya Priyatam has given us her embrace.
By coming here you will learn the art of living a blissful life free from all your worldly sorrows and worries.
In ‘Guru Griha Seva Dham’, there will be darshan of the same Brij, which Shri Krishna had taken an oath to never leave.
‘Guru Griha Seva Dham’ will show you the ancient India which was changed by the invaders.
Whose sages were scientists. And he did many scientific research for the upliftment of Sanatan Dharma.
We will introduce you to all those research so that our young generation should not be attracted towards western culture but take pride in being an Indian.
In ‘Guru Griha Seva Dham’, research and dissemination will be done on the diagnosis of diseases through ancient Indian Ayurvedic method.
In ‘Guru Griha Seva Dham’ 64 arts of ancient India which are almost on the verge of extinction. Entire arrangements will be made for their re-research and teaching them.
India’s ancient education system in ‘Guru Griha Seva Dham’, on the basis of which India was once a world guru and who was a complete scientist.
And to learn which students from abroad also used to come.
Which was the richest in the whole world.
Here the same tradition will be established through Guru Griha and the knowledge that will give new direction and energy to India will be disseminated.
In ‘Guru Griha Seva Dham’, we will tell you every ritual related to Sanatan Dharma and the scientific reason behind it.
Why is the law of idol worship told?
Is child marriage really a crime?
Why only the donation of a girl?
What is the ancient science of temples?
Once you join ‘Guru Griha Seva Dham’ then your life will get a positive outlook and will learn a wonderful art of living.
In which along with earning money, there will be a happy householder and the best path to salvation.