Guru Grah Seva Dham

सेवा की सच्ची भावना

सेवा की सच्ची भावना
🚩एक बार एक संत समाज के विकास में अपना योगदान देना चाहते थे।
उन्होंने एक विद्यालय आरम्भ किया।

उस विद्यालय को आरम्भ करने का उद्देश्य था, कि उनके विद्यालय से जो भी छात्र, छात्रायें पढ़कर निकलें, वो समाज के विकास में सहायक बनें।

एक दिन उन्होंने अपने विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया और प्रतियोगिता का विषय रखा
”सेवा की सच्ची भावना”।

प्रतियोगिता के दिन निर्धारित समय पर सभी छात्र, छात्राएं आ गए और प्रतियोगिता आरम्भ हुई।

सभी प्रतियोगियों ने आकर सेवा पर शानदार भाषण दिए।

एक छात्र ने सेवा के लिए संसाधनों को महत्व देते हुए कहा- कि हम दूसरों की सेवा तभी कर सकते है जब हमारे पास पर्याप्त संसाधन हों।
कुछ छात्रों ने कहा-
सेवा के लिए संसाधन नहीं सच्ची भावना का
होना जरुरी है।
सबने अपने अपने विचार रखें ।

जब परिणाम घोषित करने का समय आया, तब संत ने एक ऐसे छात्र को चुना, जो मंच पर आया ही नहीं।

इससे अन्य विद्यार्थियों और शिक्षकों ने पूछा कि आपने आखिर ऐसा क्यों किया ?

तब संत ने कहा- दरअसल में देखना चाहता था कि मेरे छात्रों में कौन से छात्र ने सेवा-भाव को सबसे बेहतर तरीके से समझा है।

इसलिये मैंने प्रतियोगिता स्थल के द्वार पर एक घायल बिल्ली रख दी थी ।

किसी ने उस बिल्ली की ओर ध्यान नहीं दिया। यह अकेला ऐसा एक छात्र था, जिसने वहां रुककर उस बिल्ली का उपचार किया। और उसे सुरक्षित स्थान पर छोड़ा और इस वजह से वह मंच पर नहीं आ सका।

संत ने कहा- सेवा तो आचरण में होना चाहिए,
जो अपने आचरण से शिक्षा न दे सके, उसका भाषण भी पुरुस्कार के योग्य नहीं है।
“सेवा तो एक भावना है सच्ची भावना”।

आज कल समाज में यही हो रहा हैं गरीबों लोगों के नाम पर , अनाथ लोगों के नाम पर, वृद्ध लोगों के नाम पर, गौशालाओं के नाम पर भाषण तो लोग खूब देते हैं ।
लेकिन उनसे पूछो की आप खुद कितनी सेवा करते हैं तो परिणाम निकलता हैं
बस जितनी देर तक वीडियो कैमरा चल रहा हैं उतनी देर तक ।
इसीलिए समाज पर ऐसे लोगों की सेवा का प्रभाव नही पड़ता ।

हमारे अन्दर सेवा की सच्ची भावना होनी चाहिए।
व्यर्थ के दिखावे का मतलब सेवा नहीं है।…….
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