Guru Grah Seva Dham

शालिग्रामजी से तौला मांस

शालिग्रामजी से तौला मांस
एक कसाई था , नाम था सदना।
वो भगवान के नाम कीर्तन में मस्त रहता था। यहां तक की मांस को काटते-बेचते हुए भी वह भगवद्नाम गुनगुनाता रहता था।

एक दिन वह कहीं जा रहा था,
कि उसके पैर से कोई पत्थर टकराया।
उसने देखा एक काले रंग के गोल पत्थर से उसका पैर टकरा गया है। उसने वह पत्थर उठा लिया व जेब में रख लिया ।

वापिस आकर उसने वह पत्थर माँस के वजन को तोलने के काम में लगाया।
कुछ ही दिनों में उसने समझ लिया कि यह पत्थर कोई साधारण नहीं है। जितना वजन उसको तोलना होता, पत्थर उतने वजन का ही हो जाता है।

धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी कि सदना कसाई के पास वजन करने वाला पत्थर है, वह जितना चाहता है, पत्थर उतना ही तोल देता है।

जब यह बात एक ब्राह्मण तक पहुंची।
दूर से खड़ा वह सदना कसाई को मीट तोलते देखने लगा। ध्यान से देखने पर उसके शरीर के रोंए खड़े हो गए। भीड़ के छटने के बाद ब्राह्मण सदना कसाई के पास गया।

और बोला- जिसे पत्थर समझ कर वो माँस तोल रहा है, वास्तव में वो शालीग्राम जी हैं, जोकि भगवान का स्वरूप होता है। शालीग्राम जी को इस तरह गले-कटे मांस के बीच में रखना व उनसे मांस तोलना बहुत बड़ा पाप है ।
ब्राह्मण की बात सुनकर उसे लगा कि मैं तो बहुत पाप कर रहा हूं।
सदना ने वह शालिग्राम उन ब्राह्मण को दे दिया और कहा कि “आप तो ब्राह्मण हैं, अत: आप ही इनकी सेवा करके इन्हें प्रसन्न करें।

ब्राह्मण उस शालीग्राम शिला को घर ले आए। घर आकर उन्होंने श्रीशालीग्राम का पँचामृत से अभिषेक किया व पूजा-अर्चना आरम्भ कर दी ।

कुछ दिन ही बीते थे कि उन ब्राह्मण के स्वप्न में श्री शालीग्राम जी आए व कहा-
हे ब्राह्मण! मैं तुम्हारी सेवाओं से प्रसन्न हूं, किन्तु तुम मुझे उसी कसाई के पास छोड़ आओ l
तुम मेरी अर्चना-पूजा करते हो, मुझे अच्छा लगता है, परंतु जो मेरे नाम का गुणगान – कीर्तन करते रहते हैं, उनको मैं अपने-आप को भी बेच देता हूँ।

ब्राह्मण अगले दिन ही, सदना कसाई के पास गया व उनको सारी बात बताई व श्रीशालीग्रामजी को उन्हें सौंप दिया
ब्राह्मण की बात सुनकर मन ही मन उन्होंने माँस बेचने-खरीदने के कार्य को तिलांजली देने की सोची और निश्चय किया कि यदि मेरे ठाकुर को कीर्तन पसन्द है, तो मैं अधिक से अधिक समय नाम-कीर्तन ही करूंगा l

😊आपको यह प्रसंग कैसा लगा कृपया अपने विचार हमे अवश्य बताए ।

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