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एल्युमिनियम ,बर्तन या बीमारी ?

एल्युमिनियम : बर्तन या बीमारी ?

एल्यूमिनियम ,जो हमारी रसोई में इस कदर बैठ गया है की हम अपनी माताओं से उसे निकालने की कहें तो वे हमें निकाल देंगी लेकिन एल्यूमिनियम को नहीं | इसका क्या कारण है की एल्यूमिनियम के बर्तनों ने उन्हें अपने ही बच्चों का विरोधी बना दिया है और क्यूँ हम यहाँ  एल्यूमिनियम को बीमारी बता रहे हैं ? चलिए जानते हैं 

क्या है एल्यूमिनियम ?

एल्यूमिनियम एक धातु है जो प्रथ्वी में पा धरती पर एल्युमिनियम लोहे से भी अधिक प्रचुर मात्रा में मौजूद है। धरती पर एल्युमिनियम की प्रचुरता लोहे से भी अधिक है |

यदि एल्युमिनियम इतनी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तो इसका उपयोग सिर्फ कुछ 100 -150 सालों से ही क्यूँ हो रहा है ? 

कैसे आया भारत में ?

इस पर आप खुद ही विचार कीजिए की हमारे प्राचीन वैज्ञानिक ऋषि मुनि जिन्होंने हमें आयुर्वेद दिया , अपने अनुसंधानों से पुष्पक विमान तक बना दिया ,क्या वे एक धातु से बर्तन निर्माण की प्रक्रिया नहीं बना पाते ? और फिर  उन्होंने हमें लोहा ,तांबा ,पीतल,कांसा ,सोना ,चाँदी आदि इन धातुओं से भी तो परिचित कराया तो एल्युमिनियम से क्यूँ नहीं ? 

क्यूंकि वे इस बात से परिचित थे की एल्यूमिनियम हमारे स्वास्थ्य के लिए धीमा जहर है !

और  इसका प्रमाण है हमारे स्वतन्त्रता सेनानी ! 

जब जेल में रहने के बाद भी उनके तन- मन में  मातृभूमि के प्रति वही शोर्य ,बल और उत्साह अंग्रेजों ने देखा तो उन्होंने पाया की ये आत्मबल उन्हें भोजन की पोस्टिकता से मिल रहा है | आपको इस बात का स्मरण होना चाहिए की अंग्रेजों के आने से पहले इस देश में  माटी के बर्तन अधिक उपयोग में आते थे क्यूंकि माटी का गुण है की वो भोजन के सभी पोषक तत्वों को बनाए रखने से साथ अपने गुण भी भोजन में मिला देती है | ब्रिटिशर्स ने इसी बात पर गौर किया| 

तब उन्होंने नियम बना दिया की कैदियों के लिए भोजन  एल्युमिनियम के बर्तन कुकर इत्यादि में बनाया जाएगा ओर उसी में खिलाया जाएगा | क्यूंकि उस वक्त जेल में बंद सभी कैदी भारतीय क्रांतिकारी थे और ब्रिटिशर्स उन्हें सीधे तौर पर मार नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने क्रांतिकारियों को एल्युमिनियम के द्वारा धीमा जहर देना प्रारम्भ किया |

और सबसे बड़े दुःख की बात ये है की अब भी कैदियों को एल्युमिनियम के बर्तनों में भोजन दिया जाता है और ये हमारी गुलामी का सबूत है | 

भारत में लोकप्रियता के कारण ?

भारत की अधिकतर जनसंख्या मध्यम और निम्न वर्ग की है और एल्युमिनियम अन्य धातुओं की अपेक्षा सस्ता और टिकाऊ होता  है| वहीं उच्च वर्ग आधुनिकता की होड़ और धातु विज्ञान का ज्ञान न होने के कारण इसे उपयोग करते हैं ,अन्य कारण जैसे  लोहे में जंग लग जाती है इसलिए जब भी भोजन बनाओ तो बर्तन को साफ करना पड़ता है और भोजन में कुछ कालापन आ जाता है वहीं माटी के बर्तन थोड़ी

सी लापरवाही से टूट सकते हैं यही कारण है की एल्युमिनियम ने हमारी माताओं के दिलों-दिमाग पर कब्जा कर  रखा है |

क्या एल्युमिनियम हमारे शरीर में जमा हो जाता है ?

जी हाँ ,अल्झाइमर्स के कुछ मृत रोगियों के पोस्टमॉर्टम से उनके मस्तिष्क में एल्युमिनियम की अस्वाभाविक मात्रा में मौजूदगी की बात पता चली। दुनिया भर में हुए शोधों से यह बात सामने आई है कि मानव शरीर के विभिन्न अंगों में एल्युमिनियम का जमा होना अब एक सामान्य घटना बन गई है। मानव मस्तिष्क, किडनी, लिवर, रक्त यहां तक कि हड्डियों में भी एल्युमिनियम जमा होने के साक्ष्य मिल रहे हैं। जबकि, कुदरती रूप से किसी भी स्वस्थ प्राणी के शरीर में एल्युमिनियम की मात्रा नहीं पाई जानी चाहिए। मेडिकल साइंस के अध्ययनों से एल्युमिनियम स्वास्थ्य के लिए पहले ही जहरीला साबित हो चुका है।

एल्युमिनियम: कैसे जाता है हमारे शरीर में ?

एल्युमिनियम के बर्तनों  से भोजन में एल्युमिनियम का रिसाव दो कारणों से होता है। पहला, प्रेशर कुकर, कड़ाही, देगची आदि में खाना पकाते वक्त जब पक रहे खाद्य पदार्थों को धातु की कलछी या चमचे से चलाया जाता है तो बर्तन का एल्युमिनियम घिसकर खाद्य पदार्थ के साथ मिल जाता है। दूसरा, बर्तन में पक रहे खाद्य पदार्थ, खास कर अम्लीय (खट्टे) वस्तुएं, जैसे टमाटर, कढ़ी आदि ऊंचे तापमान पर एल्युमिनियम से रिएक्ट करते हैं और एल्युमिनियम रासायनिक कंपाउंड के रूप में खाद्य पदार्थों में समा जाता है। नमक और कुछ मसाले भोजन में एल्युमिनियम  मिल जाने की गति को बढ़ा सकते हैं। ऐसा भोजन करने से शरीर में अधिक मात्रा में Aluminium पहुंचता है।

भोजन के द्वारा एल्युमिनियम हमारे पेट में पहुंचकर रक्त के जरिए शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंच जाता है। एल्युमिनियम की मात्रा यदि थोड़ी हो और वह खाने के जरिए कभी-कभार शरीर में पहुंचे तो किडनी उसे छानकर शरीर से बाहर निकाल देता है। लेकिन, मात्रा अधिक हो और वह लंबे समय तक लगातार शरीर में जाता रहे तो उसे छानकर बाहर निकालना किडनी के वश में नहीं रह जाता। ऐसा होने पर एल्युमिनियम शरीर के विभिन्न अंगों में जमा होने लगता है। मस्तिष्क, किडनी, लिवर और हड्डियों सहित शरीर के अन्य अंगों की कोशिकाओं में इसका संचय होता है। सबसे बड़ा खतरा मस्तिष्क और किडनी को होता है। एल्युमिनियम को शरीर से बाहर निकालने वाली किडनी स्वयं इसका शिकार हो जाती हैं।

एल्युमिनियम : बीमारीयों का घर कैसे ?

अधिकतर एल्युमिनियम के बर्तन बनाने के लिए कई प्रकार की फैक्टरी से निकले कबाड़ का उपयोग किया जाता है। इस कबाड़ में कैडमियम और लेड जैसी नुकसानदायक धातु भी हो सकती हैं। इन धातु का नियमित रूप से शरीर में जाने से दिमाग पर गहरा असर होता है।

एन आई की एक रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों में अधिकतर एल्युमिनियम के बर्तनों में लेड, कैडमियम और आर्सेनिक जैसे नुकसानदायक तत्व पाए गए हैं।

कैडमियम और लेड जैसी धातु गुर्दे और दिमाग को नुकसान पहुँचा सकती है। साथ ही दिल और दिमाग पर गहरा असर डाल सकती हैं। एल्युमिनियम की अधिकता से एल्जाइमर नामक बीमारी होने की संभावना बताई जाती है। इस बीमारी में मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान होता है जिसके कारण स्मरण शक्ति कम होना और दिमागी कार्यविधि में कमी आना हो सकता है। एल्जाइमर से ग्रस्त लोगों में अक्सर एल्युमिनियम की अधिकता पाई जाती है।  , शिशु और बच्चों के ऊपर एल्युमिनियम का असर अधिक घातक होगा। उनकी याददाश्त और शारीरिक वृद्धि, हड्डियों की मजबूती, लिवर, किडनी आदि पर एक वयस्क की तुलना में अधिक घातक प्रभाव पड़ता है |

गुर्दे या किडनी की समस्या से ग्रस्त लोगों को सावधान रहना चाहिए। क्योंकि ऐसे में किडनी पर्याप्त मात्रा में एल्युमिनियम शरीर से बाहर नहीं निकाल पाती और है। अधिकतर किडनी के विशेषज्ञ ( नेफ्रोलॉजिस्ट ) एल्युमिनियम के बर्तन में खाना पकाने या रखने से मना करते हैं।

 एल्युमिनियम अधिक मात्रा शरीर में जाने से एसिडिटी,दमा,  आतों में सूजन, अल्सर ,पाचन सम्बन्धी समस्या , पेट फूलना , पेट की गड़बड़ी ,त्वचा की परेशानी जैसे एक्जिमा ,रुसी ,त्वचा पर खुजली, सिर में डैंड्रफ (खुश्की)  ,आँखों की समस्या आदि परेशानी हो सकती है, हड्डियों का कमजोर होना, कमजोर याददाश्त, डिप्रेशन,मुंह के छाले, अल्ज़ाइमर,डायरिया या अतिसार,लिवर समस्या

आधुनिकता या अन्धता ?

आजकल हम खाना पैक करने ले लिए करते हैं एल्युमिनियम फ़ाइल का उपयोग करते हैं और वो भोजन के जरिए सीधे हमारे शरीर तक जाता है जबकि आज से कुछ साल पहले तक हम मलमल ले या कॉटन के कपड़े का इस्तेमाल करते थे लेकिन हम पर आधुनिक दिखने का ऐसा असर चढ़ा की उसके लिए अपने स्वास्थ्य से सौदा करने तेयार हो गए | छोटे छोटे बच्चों के लिए भी  school टिफिन में खाना भी उनकी माँ एल्युमिनियम फ़ाइल में लपेटकर रखती हैं अपना खुद का जीवन तो आपने बिमारियों की चपेट में बर्बाद कर दिया आखिर उन मासूमों का क्यूँ कर रहीं हैं|

सभी से सुनने को मिलता  है की गृहणी घर  को तो स्वर्ग भी बना सकती है ओर नर्क भी क्यूंकि रसोई आपकी जिम्मेदारी है और रसोई  में ही  परिवारजनों का स्वास्थ्य छुपा  है बस आवश्यकता है आपको अन्नपूर्णा बनने  के साथसाथ  सचेत रहने  की | 

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