Guru Grah Seva Dham

❤प्रेम क्या हैं?

प्रेम क्या हैं?
एक शब्द में कहें तो प्रेम ही परमात्मा हैं ।

अब बात आती हैं कि प्रेम परमात्मा का रूप कब बनता हैं ?
तो इसका सीधा सा जवाब हैं ।
जब दो आत्मा , दो हृदय एक रूप हो जाए ।
जहाँ तेरा मेरा का भाव समाप्त हो जाए,
मै मेरा का भाव हृदय में ना रहें,
कोई पूछे?
ये तन किसका हैं?
ये मन किसका हैं?
ये जीवन किसका हैं ?
तो एक ही जवाब हो सब कुछ प्रियतम का ।
हर पल, उठते – बैठते , खाते – पीते, सोते-जागते , सुख में दुख में हर परिस्थति में केवल और केवल अपने प्रेमी का ही चिन्तन हो ।
प्रेमी की खुशी में ही अपनी खुशी देखना, यदि वह चाहे कि तुम उससे दूर रहो , तो जब तक वह स्वयं ना मिलने कि कहें तब तक अपने आप को उससे दूर रखना ।
वह भी प्रसन्नता के साथ ।

जब खुद का, घर-परिवार का, समाज का, मान-अपमान का, सुख – दुःख का डर हृदय से निकल जाए ।
अपने प्रेमी के अलावा कुछ याद ना रहें ।
जब ऐसी स्थति किसी कि बनती हैं तब सच्चा प्रेम होता हैं ।
और वही प्रेम परमात्मा का रूप हो जाता हैं ।

यही स्थति तो गोपियों की हुयी थी, यही स्थति तो मीरा की हुयी थी अपने गिरधर के लिऐ ।
मीरा ने पद गाया
मेरे तो गिरधर गोपाल,
दूसरा ना कोई ।
इस पद की आधी लाइन तो सब कह देते हैं ।
॥ मेरे तो गिरधर गोपाल ॥
लेकिन केवल इतने से काम नहीं चलेगा ।
जब तक आप यह नहीं कहोगे,
यह नहीं मानोगे कि –
॥ दूसरा ना कोई ॥
ये बात बड़ी महत्वपूर्ण हैं ।
” दूसरा ना कोई ” में प्रेम का सच्चा समर्पण हैं
और यही गोविंद को प्रगट करता हैं ।

एक बात हमेशा याद रखना ।
बिना समर्पण के कभी सच्चा प्रेम नहीं हो सकता ।
चाहे वह संसार से हो या भगवान से ।

प्रेम गली अति सांकरी ।
जामे दो ना समाए ॥
जब मै था, तब हरि नहीं ।
अब हरि हैं, मै नाए ॥

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