
हिन्दू नववर्ष भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से मनाया जाता है. इसे नवसंवत्सर कहते हैं।
इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। नवरात्र की शुरुअात इसी दिन से होती है। जिसमे हमलोग उपवास एवं पवित्र रह कर नव वर्ष की शुरूआत करते है।
वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है। चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुण्ठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया।
न शीत न ग्रीष्म। पूरा पावन काल। ऐसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए, श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि के ठीक नवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है। संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया साल विक्रम संवत्सर का सम्बन्ध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है।
कहीं धूल-धक्कड़ नहीं, कुत्सित कीच नहीं, बाहर-भीतर जमीन-आसमान सर्वत्र स्नानोपरांत मन जैसी शुद्धता। पता नहीं किस महामना ऋषि ने चैत्र के इस दिव्य भाव को समझा होगा और किसान को सबसे ज्यादा सुहाती इस चैत मेे ही काल गणना की शुरूआत मानी होगी।
चैत्र मास का वैदिक नाम है-मधु मास। मधु मास अर्थात आनन्द बाँटती वसंत का मास। यह वसन्त आ तो जाता है फाल्गुन में ही, पर पूरी तरह से व्यक्त होता है चैत्र में।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व….
(1) सम्राट विक्रमादित्य ने इसी
दिन राज्य स्थापित किया था इन्हीं के नाम पर… विक्रमसंवत का पहला दिन प्रारंभ होता है ।
(2) प्रभु श्री राम का राज्यभिषेक का दिन भी यही था ।
(3) सिख परंपरा के द्वितीय गुरु श्री अंगद देव जी के जन्मदिवस का दिन भी यही है ।
(4) युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ था।
यह समय किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के….
लिए विशेष शुभ मुहूर्त माना जाता है ।
🌞परम रसिक श्रध्देय
श्री हितेन्द्र कृष्ण जी महाराज जी
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