विवाह के समय धोती पहनना क्यूँ जरूरी हैं?
📚शास्त्रों में लिखा हैं
कि पूजा , पाठ , यज्ञ , हवन … आदि धार्मिक कार्यो को धोती पहन कर ही करना चाहिए ।
यदि ऐसा हम नहीं करते हैं तो उसका पूर्ण फल हमें प्राप्त नहीं होता हैं ।
और कई प्रकार के शारीरक कष्ट होने की भी सम्भावना होती हैं ।
अब सवाल यह हैं ?
कि जब पूजा में , यज्ञ में , हवन में जब धोती इतना महत्व रखती हैं ।
तो जो गृहस्थ आश्रम के प्रारम्भ होने का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार हैं
जिसे हम विवाह कहतें हैं
फिर विवाह के समय हम धोती पहनना क्यूँ भूल जाते हैं ?
विवाह में भी पूजा होती हैं, हवन होता हैं, संसार का सबसे बड़ा दान कन्या दान होता हैं, उस समय हमें धोती कि याद क्यूँ नहीं आती ?
और गजब कि बात तो यह हैं ।
हमने बहुत से ऐसे ब्रह्मणों को भी देखा हैं
जो किसी अनुष्ठान में या किसी यजमान के घर विवाह कराने जाएंगे तो धोती पहन के जाएंगे, और जब खुद के विवाह कि बारी आती हैं तो वह भी धोती को भूल जाते हैं ।
इसी को कहतें हैं मानसिक गुलामी!
क्या आप जानते हैं ?
इसके पीछे वैज्ञानिक महत्व भी छुपा हुआ है।
पूजा करते वक्त काफी लंबे समय तक लेागों को एक आसन में बैठना पड़ता है,
तो ऐसे में धोती से अच्छा और कुछ भी पहनने के लिये नहीं हो सकता।
आज कल लोग पजामा, जींस और पैंट पहन कर ही पूजा करने के लिये बैठ जाते हैं। इससे हमारे शरीर के रक्त प्रवाह पर बुरा असर पड़ता है। जो भविष्य में कई प्रकार की बीमारियों का कारण बनता हैं ।
धोती बारीक सूती कपड़े से बनी होती है जो कि सुविधाजनक होने के साथ ही हवादार भी होती है।
एक और कारण ये भी है कि जनता में ज्ञान का अभाव है और वे ये नहीं जानते कि धोती पहनना क्यों अनिवार्य है या इसके क्या लाभ हैं।
अपने परिधान पर हमे गर्व होना चाहिये, आखिर हमारे पूर्वजों ने सोच समझकर ही यह नीयम बनाया हैं ॥
🙏आइए आज से एक संकल्प ले के आज के बाद जब भी यज्ञ, हवन, पूजन, पाठ, विवाह …जैसे हर सामाजिक एवं धार्मिक उत्सव धोती कुर्ता या धोती पटका या धोती बगल बंधी पहन कर ही करेंगे ।
एवं अपने से जुड़े सभी लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करेंगे ।
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