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मृत्यु शोक य़ा उत्सव

मृत्यु शोक य़ा उत्सव
☺आज एक बहुत ही गंभीर विषय के बारे में चर्चा करते हैं ।
💀मृत्यु क्या हैं ?
😭शोक …………?
या
🤗उत्सव …………?
असल में मृत्यु इन दोनों से परे हैं ।
क्यूंकि मृत्यु देह ( शरीर ) की होती हैं ।
और जब देह ( शरीर ) से आत्मा निकल जाती हैं ।
उसके बाद उसका शोक मनाओ या उत्सव उस देह ( शरीर ) को इन सब से कोई लेना देना नहीं होता ।

अब बात आती हैं कि हम शोक किसका मना रहें हैं?
देह (शरीर) का ?
यदि देह (शरीर) का शोक हैं , तो शरीर तो आपके सामने हैं ।
और कई दिन तक उसे सहेज कर भी रख सकतें हैं, यदि शरीर से प्रेम हैं तो ।
लेकिन यदि आप आत्मा का शोक मना रहें हैं ।
तो आत्मा तो अमर हैं अभिनाशी हैं ।
ना उसका जन्म होता, ना मरण ।
फिर शोक क्यूँ ? , रुदन क्यूँ ? , विलाप क्यूँ ?
हम जहाँ रहते हैं यह हैं मृत्यु लोक,
जो भी यहा आता हैं , उसे एक ना एक दिन जाना ही होता हैं । यही सच्चाई हैं ।
हमसे पहले लाखों आए लाखों गए ।
हमारे बाद भी करोड़ों आएंगे करोड़ों जाएंगे ।
यहाँ हमेशा के लिए कोई भी नहीं रह सकता ।
इसलिए शोक करना व्यर्थ हैं ।

तो आइए आज से एक नयी परंपरा प्रारम्भ करें ।
मृत्यु को उत्सव बनाए ।
क्यूँकि हमें उत्सवों कि तैयारी करने कि आदत हैं ।
इसी बहाने कम से कम हम अपनी मृत्यु कि तैयारी तो कर पाएंगे ।
जिससे जीवन के किसी मोड़ पर हमारा मृत्यु से सामना हो तो हम बांह फैला कर उसका स्वागत कर सकें ।
और अंतिम समय में मुस्कुराते हुए इस देह ( शरीर ) का त्याग का त्याग कर सकें ।

👤जीवन को इस प्रकार आनंद में जियो ,
जैसे ये आपके जीवन का आखिरी पल हो ।
फिर आपको मृत्यु का भय नहीं सताएगा ।
और एक बार यदि आपके अंदर से मृत्यु का भय निकल गया, तो जीवन कि हर कठिन से कठिन परिस्थति से बड़ी ही सरलता और सहजता से आप पार हो जाओगे ॥
🙏॥ धन्यवाद ॥🙏
😊आपको यह प्रसंग कैसा लगा और आपने इस प्रसंग से क्या सीखा ?
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